राष्ट्रवाद की राजनीति में बीजेपी को क्यों मिलता है जनता का समर्थन?

सुरेन्द्र चौरसिया, बीजेपी विधायक
सुरेन्द्र चौरसिया, बीजेपी विधायक

जब भी भारत में चुनाव आते हैं, एक शब्द गूंजता है — “राष्ट्रवाद”। और इस शब्द के साथ जुड़ा होता है एक नाम: BJP (भारतीय जनता पार्टी)। चाहे वह सर्जिकल स्ट्राइक हो, CAA-NRC की बहस, या राम मंदिर निर्माण — बीजेपी ने राष्ट्रवाद को न सिर्फ राजनीतिक एजेंडा, बल्कि भावनात्मक कनेक्शन बना दिया है।

यही कारण है कि राष्ट्रवाद के नाम पर जनता बार-बार बीजेपी को समर्थन देती है?

जनता का झुकाव: राष्ट्रवाद को माने ‘India First’ एजेंडा

आम मतदाता को जब लगता है कि देश को सुरक्षा, सम्मान और आत्मनिर्भरता चाहिए — वह उसी पार्टी की तरफ देखता है जो इन मुद्दों को फ्रंट पर लाती है।

और बीजेपी यही करती है:

  • “हम आतंकवाद के खिलाफ सख्त हैं”

  • “हम सेना को मजबूत बनाते हैं”

  • “हम घुसपैठियों को देश से बाहर निकालेंगे”

ये सभी बयान जनता में “देश पहले” की भावना को जगाते हैं।

बीजेपी का राष्ट्रवाद बनाम विपक्ष की असहजता

जहां बीजेपी राष्ट्रवाद को गर्व का विषय बनाती है, वहीं कई विपक्षी दल इसे ध्रुवीकरण का औजार मानते हैं। यही फर्क बीजेपी को लाभ और स्पष्टता देता है, और विपक्ष को defensive मोड में डालता है।

BJP का नैरेटिव: राष्ट्रवाद + विकास = Double Engine Support

बीजेपी सिर्फ भावनात्मक राष्ट्रवाद नहीं, बल्कि इसे विकास मॉडल से जोड़ती है:

  • Make in India, Digital India = आत्मनिर्भरता

  • Ujjwala, PM Awas, Jan Dhan = गरीब समर्थक राष्ट्रभक्ति

  • Bullet Train से लेकर Vande Bharat तक = प्रगति का राष्ट्रवादी प्रतीक

यही कारण है कि राष्ट्रवाद बीजेपी के लिए sentiment + solution दोनों बन जाता है।

युवाओं और पहली बार वोटर्स में राष्ट्रवादी भावनाएं ज्यादा

आज की युवा पीढ़ी सोशल मीडिया पर देशभक्ति कंटेंट, Fauji reels, और India First campaigns से प्रभावित है।

“जो देश के लिए बोलता है, वही मेरा नेता है” – यही सोच युवा वोट बैंक को बीजेपी की तरफ मोड़ती है।

समर्थन बरकरार है

  • क्योंकि जनता को लगता है कि कोई तो है जो देश की बात करता है खुलकर

  • क्योंकि विपक्ष राष्ट्रवाद पर एक राय नहीं बना पाता

  • और क्योंकि “Desh ke liye kuch karne की भावना” भाजपा के नैरेटिव में दिखती है

मोदी-योगी: राष्ट्रवाद की दो मशालें, एक संकल्प

जब बात देशभक्ति और राष्ट्रवाद की आती है, तो दो नाम अपने आप सामने आते हैं — नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ। इन दोनों नेताओं ने सिर्फ नारों में नहीं, बल्कि नीति, निर्णय और नजरिए में राष्ट्रवाद को जिया है।

“राष्ट्र पहले, बाकी बाद में” — यही सोच इन दोनों को आम जनता से जोड़ती है।

राष्ट्रवाद की अलख जगाना

मोदी ने दुनिया में भारत की पहचान को नई ऊंचाई दी — UN से लेकर G20 तक। योगी ने यूपी में कानून का राज और हिंदुत्व की विचारधारा को निडरता से लागू किया।

इन दोनों की कार्यशैली में साफ दिखता है:

  • अस्मिता सर्वोपरि है

  • देश की सुरक्षा के लिए कड़े फैसले ज़रूरी हैं

  • आत्मनिर्भर भारत ही असली राष्ट्रवाद है

युवाओं में राष्ट्रवाद की भावना को दी ऊर्जा

सोशल मीडिया, शिक्षा और स्किलिंग से लेकर “Har Ghar Tiranga”, “Vocal for Local”, और “बुलडोजर मॉडल” — मोदी-योगी की जोड़ी ने युवा भारत को proud nationalist बनाया।

“Yuva Bharat अब सिर्फ जॉब नहीं, Nation Building की बात करता है।”

विकास + विचारधारा = राष्ट्रवादी शासन मॉडल

इन दोनों नेताओं ने राष्ट्रवाद को केवल भाषण तक सीमित नहीं रखा —इसे उन्होंने जोड़ा:

  • विकास से (इनफ्रास्ट्रक्चर, हेल्थ, टेक्नोलॉजी)

  • संस्कृति से (काशी, अयोध्या, राम मंदिर)

  • सुरक्षा से (उग्रवाद, आतंकवाद, माफियावाद पर करारा प्रहार)

यही कारण है कि राष्ट्रवाद इनके शासन में भावना नहीं, दिशा बन चुका है।

जनता का विश्वास: राष्ट्रवाद में दिखता है भविष्य

आज जब देश खड़ा होता है तो पीछे मोदी-योगी जैसे नेता नजर आते हैं। उनकी भाषा में आत्मबल, निर्णय में साहस, और नेतृत्व में दिशा है।

“भारत का भाग्य तब बदलता है जब नेता राष्ट्र के लिए जीते हैं।”

देशभक्ति बोले तो ‘गुनाह’? कब से राष्ट्रवाद हो गया कंट्रोवर्सी!ते

ये लेखक के विचार हैं। 

 

Related posts

Leave a Comment